Thursday, February 14, 2008

Majboori...




अंधेरे मे ही गुज़र कर लेंगे ,
जिंदगी यू ही बसर कर लेंगे .


शोलों सा जलना याद नही है ,
शबनम सा सफर कर लेंगे .

जीना भी तों एक मज़बूरी है ,
न हो सकेगा ,मगर कर लेंगे .

टूटने से पहले मालूम हो जाए ,
हम ख़ुद को पत्थर कर लेंगे

1 comment:

jasii jaisi koi nahin said...

apki poem humne padhi hain aapbhut acha likhte hain ji